Friday 15 September 2023

मुझको तुम सब याद रहोगे

ऐसी कोई शर्त नहीं थी
ऐसी कोई शर्त नहीं है
कल तक जितना स्नेह मुझे था
आज भी है और उतना ही है

हो सकता है जाने अनजाने
शायद के दुनियादारी में
नाम मेरा शामिल न रहा हो 
भूली बिसरी यारी में

मुझको तुम सब याद रहोगे
बातों में आबाद रहोगे
गरियाऊंगा दुलराऊंगा
हर एक मिनट फिर दोहराऊंगा
फिर भी मेरे साथ रहोगे
मुझको तुम सब याद रहोगे

तुम लिख देना...

 
 ना कविता ना कवित्त 
ना ही भाषा की विद्वत्ता 
जो भी जैसा भी जिस क्रम में 
मन में आए, तुम लिख देना

आई बतलाई गढ़ी बुनी 
तुम लिख देना, सब कही सुनी 
झूट साच, सब लिख देना 
कच्चा पक्का सब लिख देना 

ना तुलसी ना रसखान सरीखा 
ना ही गूढ़ सूर साहित्य 
जो भी जैसा भी जिस क्रम में 
मन में आए, तुम लिख देना

बैठे बैठे एक दिन मन में 
आया था पर नहीं कहा 
औरों से बातों के क्रम में 
दुहराया था पर नहीं कहा 

लाग लपेट ना मान मनुव्वल 
ना ही दुनियाई सिद्धत्ता 
जो भी जैसा भी जिस क्रम में 
मन में आए, तुम लिख देना

Tuesday 23 May 2023

चेहरा झूठ नहीं बोलता

कभी सुना है  
चेहरा झूठ नहीं बोलता 
सही सुना है 
मगर आधा ही  

"बच्चों का चेहरा झूठ नहीं बोलता"
बच्चे जब भी झूठ बोलते हैं 
चेहरा सच बोल देता है 
और कहावत सच हो जाती है ॥ 

एक बच्चा
जो भीतर छुपा बैठा है
उसे बाहर आने दो,
और कहावत 
फिर से सच हो जाने दो ॥ 

- नवीन
(... यूँ ही कुछ सोचता हूँ मैं)

Thursday 11 May 2023

ऐ मां मुझको फिर से जन दे !

ऐ मां मुझको फिर से जन दे !
जीवन हो शुरू फिर बचपन से
ऐ मां मुझको फिर से जन दे !

इस बार जो मिटटी तन भर जाय
धोना ना, रहने ही देना
मेरी तोतली बोलों पे,
नहीं बताना सही गलत
मुस्का देना, कहने ही देना 

एक बार सजों लूं,
फिर कहाँ मिलेंगे
घाव सजा लूं घुटनन पे !

ऐ मां मुझको फिर से जन दे !

तेरी गोद में उलट पलट
तब तक कर लूं ,
जब संकोच धरूं
मुहं नोच लूं, बाल बिखेरूं
मन माना खेल किलोल करूँ

एक बार जो छूटे
फिर कब मिलते हैं,
ये संगी साथी छुटपन के !

ऐ मां मुझको फिर से जन दे !

है याद मुझे मैं कहता था
जब खूब बड़ा हो जाउंगा,
मेरी प्यारी मां मेरी अच्छी मां
तुझसे ही ब्याह रचाउंगा

और मुझे कन्हैया ले के चल
तुझको कुछ दिखलाता हूँ,
एक निशां बना के आया हूँ
अभी जीभ से दर्पन पे !

ऐ मां मुझको फिर से जन दे !

खा ले बेटा, फिर बढेगा कैसे
इस बार नहीं बढ़ना मुझको
इस बार नहीं, एक ग्रास भी लूँगा
खूब भगाऊँगा तुझको

तेरी गोद से बहुत बड़ा
दूर खड़ा कर देंगे ये
ऐ मां अबकी रहने ही दे
दो चार निवाले बचपन के !

ऐ मां मुझको फिर से जन दे !

आप-धापी उहा -पोह
लेन-देन तेरा-मेरा
मथे डालता है मां मुझक
निर्मम जीवन का फेरा 

मैं गोद गोद खेला था मां
अब गेंद सा खेला जाता हूँ
कुछ भी कर मां एक बार मुझे
एक छत्र मेरा वो शासन दे !

ऐ मां मुझको फिर से जन दे !
जीवन हो शुरू फिर बचपन से
ऐ मां मुझको फिर से जन दे !

Monday 25 May 2015

आसान नहीं है तारा होना

आसान नहीं है तारा होना
खुद ही में जलना
लावे सा पिघलना
निरंतर |
अलग कर लेना खुद को,
अवस्थित कर लेना
दूर कहीं अन्तरिक्ष में
सबसे अलग
आकाश गंगा में
ध्रुव हो जाना |

भभकती ये ज्वाला
दूर ........बहुत दूर से
टिमटिमाती सी दिखाई देती है
और नितांत पीड़ा सहता सूर्य
तारा सा दिखता है
शांत शीतल टिमटिमाता हुआ
बहुत घने अंधेरों में ……. बहुत चमकदार |

आसान नहीं है तारा होना...

- नवीन
(... यूँ ही कुछ सोचता हूँ मैं)

तीन तेरह में रहा खोया, कल परसों में

तीन तेरह में रहा खोया, कल परसों में
तिहीकिस्मत रही और उम्र गयी बरसों में ||

मैं तो लिखता रहा दिन रात मेरे, नाम तेरे
जिंदगी तू ना बिकी, हाय! ना मिली हर्फ़ों में ||

इस तरह तो कभी कीमत नहीं पूरी होगी
किश्तें तू लेगी जो, कुछ सामने कुछ पर्दों में ||

देरे लम्हा सही, सिहरन से गुज़र जाएगी
रू-ब-रू मैं जो हुआ, लाख हो तू फ़र्दों में ||

एक दिन तो तुझे एहसास भी हो जायेगा
था क्या जो हार गयी, जीत के भी शर्तों में ||

तीन तेरह में रहा खोया, कल परसों में.....

- नवीन
(... यूँ ही कुछ सोचता हूँ मैं)

तिहीकिस्मत = भाग्य विहीन
हर्फ़ों = अक्षर
देरे लम्हा = यात्रा का एक क्षण
फ़र्द = रजाई

Saturday 18 April 2015

कुछ तो खोया है

नाम याद है
पता भी याद है
दोस्त रिश्तेदार परिवार
सब याद है
फिर खोया क्या है

जहाँ तक जानता हूँ
सब कुछ है
फिर भी लगता है
कुछ है, जो नहीं है
कुछ है, जो अधूरा कर रहा है

चौराहा है
चार रास्ते हैं |
मेरा मोड़ कौन सा है
जहाँ खड़ा हूँ
वहां से आगे जाना है
या पीछे रास्ता है
आया किधर से था ....मैं

मैं .............. मैं कौन
इस नाम के तो सैकड़ों होंगे
फिर, मैं कौन ?
बिना सरनेम का
एक चेहरा
बिना आँख नाक मुंह कान का
सिर्फ आकार का
कोई तो पहचानता होगा
कोई पडोसी, कोई घर का

घर .......... घर कहाँ
घर का पता
पता तो है
मकान नम्बर ?
अभी तो याद था
क्या हो रहा है
सब क्यूँ खो रहा है ?

अनजान रास्ता
अनजान चेहरा
और अधूरा पता
शहर क्या आया
ज़मीन ही खो गयी मेरी |
ज़मीन .... मेरे मनुष्य होने की
एक परिवार होने की
एक मित्र होने की
एक पुरुष होने की

नाम पता ढूंढ भी पाया,
तो ........तो हो जाऊंगा
अमुक नाम अमुक पता
जिसकी जमीन खो गयी है
इसी रास्ते पे आगे रहता है |

Wednesday 15 April 2015

जब खाली हैं तो अखर रही है

जब बिजी हैं...... तो बिजी हैं
जब खाली हैं तो अखर रही है
कमी तुम्हारी बनी हुई है
बस जैसे तैसे, गुज़र रही है |

शऊर कम था एक तरफ तुला में
गूरुर की हद थी दूसरे में
एक मिनट ने तौला था एक सदी को
कौड़ी कीमत लगी, बिकी दूसरे में

जुदा नहीं है, जुड़े भी नहीं हैं
कुछ कसर रही है, बसर रही है |
बस जैसे तैसे, गुज़र रही है |

जब बिजी हैं...... तो बिजी हैं
जब खाली हैं तो अखर रही है ||

- नवीन
(... यूँ ही कुछ सोचता हूँ मैं)

( शऊर = शिष्टाचार, Etiquette; तुला = तराजू, Scale; गूरुर = अहंकार, Ego )

गैर-जरूरी रिश्ते

कीमती जेवरों की तरह,
संदूक में कहीं भीतर
कपड़ों की तह में
सहेज कर रक्खे हुए

आसमान छूती
बुलंद जिंदगी की
जमीन की सतह से नीचे
नींव की तरह छुपे हुए

चौबीस घंटों के चक्र में
हफ्तों तक
कभी कभी महीनों और सालों भी
जिनकी जरूरत नहीं पड़ती

रोज़मर्रा की जिंदगी में
गैर-जरूरी से रिश्ते;
भले ही, याद नहीं किये जाते
होते हैं, बहुत जरूरी रिश्ते

वे बने रहते हैं
जरूरत की ज़मीन से कहीं बहुत नीचे
या कि आकाश से विस्तृत
हर तरफ - बहुत ऊपर
कभी, पीठ पर किसी भरी हथेली से,
समेटने को तैयार बाहों से
या कि बराबर से खड़े कद हों कोई,
कि दुनिया भर की जगह लिए कंधे

रोज़मर्रा की जिंदगी में
गैर-जरूरी से रिश्ते;
भले ही, रोज़ याद नहीं किये जाते
होते हैं, और बने रहते हैं
बहुत जरूरी रिश्ते ||

- नवीन
(... यूँ ही कुछ सोचता हूँ मैं)

पत्थर उठा के मारा है

पत्थर उठा के मारा है
...और अब उनकी राह देखता हूँ

मैं पुष्प नहीं हूँ
पराग भी धारण नहीं करता
और इश्क हुआ है
शहद के कारीगरों से
वो भला क्यूँ आयेंगेमुझ तक
हमारा एक ही रिश्ता हो सकता है
... दंश का !

पत्थर उठा के मारा है
...और अब उनकी राह देखता हूँ ||

- नवीन
(... यूँ ही कुछ सोचता हूँ मैं)