Monday 9 April 2012

एक और एक ग्यारह होता है

सारा जग यूँ ही कहता है 
एक और एक ग्यारह होता है |

मैंने भी एक बार रखा था 
एक और एक को 
सोचा था सम्मुख देखूँगा 
सपने को सच को |
कैसे जुड़ के बूँदें दो
बन जातीं सरिता 
कैसे जुड़ के दो छुद्र 
पाते सौन्दर्य मणि का |

मैंने भी एक बार रखा था 
एक और एक को 
सोचा था अनुभव कर लूँगा 
पल अदभुत को |
प्रेमपाश, मन का विश्वास
कुछ भी काम न आया 
ज्यों-के-त्यों दोनों बने रहे
कोई परिणाम न आया |

परख नहीं पाया अब तक मैं 
कहावतों का कहा हुआ 
बहुत जुड़ा तो दो तक पंहुचा 
ग्यारह नही हुआ |

दिखने को दो 'एक' थे और
कहने को ग्यारह होता है |
सारा जग यूँ ही कहता है 
एक और एक ग्यारह होता है |

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