Thursday 27 December 2012

इक बूढ़े दरिया के दिल में, चलो जवानी रखते हैं.../ नवीन कुमार पाठक

इक बूढ़े दरिया के दिल में, चलो जवानी रखते हैं
सदियों से ठहरे पानी पे, कुछ बूँदें पानी रखते हैं

कहने सुनने से दूर बहुत, कोई ठिकाना करते हैं
अब तक के बीते लम्हों का नाम कहानी रखते हैं

बरसों की दूरी रिश्तों में सन्नाटा भर देती हैं
सन्नाटे की पीठ पे कुछ बर्फीला पानी रखते हैं

वो आएगा औ हम सबको अपनी यादें दे जायेगा
वो भी तो ले के जाये, कुछ तूफानी करते हैं

ये तारीख जगह और वक़्त एक दिन यादें हो जायेंगे
इन मुस्कानों के बक्सों में थोड़ी शैतानी रखते हैं

इक बूढ़े दरिया के दिल में, चलो जवानी रखते हैं !!