बलिदान कहो या आहूति
दान कहो या त्याग
...... करना होगा |
अतृप्त क्षुधा के मौन का
है अंतराल इतना लम्बा
...... भरना होगा |
सूख चुके हैं वक्षोरूह
अब मत नोचो !
होगा कुरूप कितना भविष्य
कुछ तो सोचो !
समय रहे न चेते तो
यह तय समझो,
प्रस्ताव नहीं कुछ भी होगा
निर्णय समझो
जब कभी मौन ये टूटेगा
निश्चेष्ट चेतना जागेगी
मांगेगी तो हे! मानव
प्रकृति लहू ही मांगेगी ||
11.10.98
दान कहो या त्याग
...... करना होगा |
अतृप्त क्षुधा के मौन का
है अंतराल इतना लम्बा
...... भरना होगा |
सूख चुके हैं वक्षोरूह
अब मत नोचो !
होगा कुरूप कितना भविष्य
कुछ तो सोचो !
समय रहे न चेते तो
यह तय समझो,
प्रस्ताव नहीं कुछ भी होगा
निर्णय समझो
जब कभी मौन ये टूटेगा
निश्चेष्ट चेतना जागेगी
मांगेगी तो हे! मानव
प्रकृति लहू ही मांगेगी ||
11.10.98