Friday 28 June 2013

प्रकृति जब जागेगी

बलिदान कहो या आहूति
दान कहो या त्याग
...... करना होगा |

अतृप्त क्षुधा के मौन का
है अंतराल इतना लम्बा
...... भरना होगा |

सूख चुके हैं वक्षोरूह
अब मत नोचो !
होगा कुरूप कितना भविष्य
कुछ तो सोचो !
समय रहे न चेते तो
यह तय समझो,
प्रस्ताव नहीं कुछ भी होगा
निर्णय समझो

जब कभी मौन ये टूटेगा
निश्चेष्ट चेतना जागेगी
मांगेगी तो हे! मानव
प्रकृति लहू ही मांगेगी ||

11.10.98

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