Monday 11 August 2014

यूँ ही चला चले

क्यूँ कर मेरे वजूद पर कोई करे सवाल
तब तक हवा चले कि जब तक शज़र चले|

हर रोज जिया-मरा सिर्फ आवाम के लिए
क्यूँ कर न ऐसे शाह के पीछे शहर चले ||

है नेकियों का रूह से रिश्ता इस तरह
साये सी संग चलती हैं इंसा जिधर चले ||

आँखों में शर्म हो.......... तब तक ही उम्र है
फिर इंसा नहीं चलता, सांसों का हुनर चले ||

हर बार उसने शायद अपनी जान फूंक दी
माँ, तुझसे आगे तेरी दुआओं का असर चले ||

ताउम्र अपनी रूह वो ........ तराशते रहे
अब, वो कहीं चलें, कहीं उनकी खबर चले ||


- नवीन
(... यूँ ही कुछ सोचता हूँ मैं)