उसने 'अहंकार' को पाला
और घर से विदा कर दिया,
स्नेह को!
स्नेह का
बार बार टोकना समझाना
उसे पसंद नहीं था
'अहंकार' असहज हो जाता था |
एक दो बार 'स्नेह' को संकेत भी दिया
मगर वो बूढ़ी लकड़ी, टूटने को तैयार थी
मगर मुड़ने को नहीं
अंततः वही हुआ जिसका डर था
उसने 'अहंकार' को पाला
और घर से विदा कर दिया,
स्नेह को!
अहंकार को नया नाम मिला है
"स्वाभिमान"
आज उसके नामकरण की दावत है
खूब रौनक है
काफी लोग आये हैं
'चाटुकार' सबसे पहले पंहुचा
'लोलुप', 'लम्पट' एक साथ आये
'अनर्गल प्रलाप', 'स्वम् वक्ता' और 'अज्ञान' भी पहुच गए
'मित्थ्या स्तवन' के आते ही रौनक आ गयी
और आखिर में
'आत्ममुग्धता' ने दावत शुरू कर दी |
किसी ने भी 'स्नेह' की प्रतीक्षा नहीं की
अब स्नेह वहां नहीं रहता
वो रहता है सड़क उस पार
सामने के मकान की
पहली मंजिल पर |
वह ना तो अपना नाम ही बदल पाया
ना स्वभाव,
अब भी ताकता रहता
इस तरफ;
उम्र का क्या भरोसा
क्या जाने, कल परिचय की डोर भी टूट जाये,
काश ! जाते जाते बता पाता,
"दावत निपटते ही ये सब चले जायेंगे
गर मैं भी ना रहूँ
तब सिर्फ 'विवेक' का भरोसा करना
तुम नहीं जानती
'अनमोल' हो तुम" |
- नवीन
(... यूँ ही कुछ सोचता हूँ मैं)
और घर से विदा कर दिया,
स्नेह को!
स्नेह का
बार बार टोकना समझाना
उसे पसंद नहीं था
'अहंकार' असहज हो जाता था |
एक दो बार 'स्नेह' को संकेत भी दिया
मगर वो बूढ़ी लकड़ी, टूटने को तैयार थी
मगर मुड़ने को नहीं
अंततः वही हुआ जिसका डर था
उसने 'अहंकार' को पाला
और घर से विदा कर दिया,
स्नेह को!
अहंकार को नया नाम मिला है
"स्वाभिमान"
आज उसके नामकरण की दावत है
खूब रौनक है
काफी लोग आये हैं
'चाटुकार' सबसे पहले पंहुचा
'लोलुप', 'लम्पट' एक साथ आये
'अनर्गल प्रलाप', 'स्वम् वक्ता' और 'अज्ञान' भी पहुच गए
'मित्थ्या स्तवन' के आते ही रौनक आ गयी
और आखिर में
'आत्ममुग्धता' ने दावत शुरू कर दी |
किसी ने भी 'स्नेह' की प्रतीक्षा नहीं की
अब स्नेह वहां नहीं रहता
वो रहता है सड़क उस पार
सामने के मकान की
पहली मंजिल पर |
वह ना तो अपना नाम ही बदल पाया
ना स्वभाव,
अब भी ताकता रहता
इस तरफ;
उम्र का क्या भरोसा
क्या जाने, कल परिचय की डोर भी टूट जाये,
काश ! जाते जाते बता पाता,
"दावत निपटते ही ये सब चले जायेंगे
गर मैं भी ना रहूँ
तब सिर्फ 'विवेक' का भरोसा करना
तुम नहीं जानती
'अनमोल' हो तुम" |
- नवीन
(... यूँ ही कुछ सोचता हूँ मैं)
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