Saturday 18 April 2015

कुछ तो खोया है

नाम याद है
पता भी याद है
दोस्त रिश्तेदार परिवार
सब याद है
फिर खोया क्या है

जहाँ तक जानता हूँ
सब कुछ है
फिर भी लगता है
कुछ है, जो नहीं है
कुछ है, जो अधूरा कर रहा है

चौराहा है
चार रास्ते हैं |
मेरा मोड़ कौन सा है
जहाँ खड़ा हूँ
वहां से आगे जाना है
या पीछे रास्ता है
आया किधर से था ....मैं

मैं .............. मैं कौन
इस नाम के तो सैकड़ों होंगे
फिर, मैं कौन ?
बिना सरनेम का
एक चेहरा
बिना आँख नाक मुंह कान का
सिर्फ आकार का
कोई तो पहचानता होगा
कोई पडोसी, कोई घर का

घर .......... घर कहाँ
घर का पता
पता तो है
मकान नम्बर ?
अभी तो याद था
क्या हो रहा है
सब क्यूँ खो रहा है ?

अनजान रास्ता
अनजान चेहरा
और अधूरा पता
शहर क्या आया
ज़मीन ही खो गयी मेरी |
ज़मीन .... मेरे मनुष्य होने की
एक परिवार होने की
एक मित्र होने की
एक पुरुष होने की

नाम पता ढूंढ भी पाया,
तो ........तो हो जाऊंगा
अमुक नाम अमुक पता
जिसकी जमीन खो गयी है
इसी रास्ते पे आगे रहता है |

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना .....

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