तीन तेरह में रहा खोया, कल परसों में
तिहीकिस्मत रही और उम्र गयी बरसों में ||
मैं तो लिखता रहा दिन रात मेरे, नाम तेरे
जिंदगी तू ना बिकी, हाय! ना मिली हर्फ़ों में ||
इस तरह तो कभी कीमत नहीं पूरी होगी
किश्तें तू लेगी जो, कुछ सामने कुछ पर्दों में ||
देरे लम्हा सही, सिहरन से गुज़र जाएगी
रू-ब-रू मैं जो हुआ, लाख हो तू फ़र्दों में ||
एक दिन तो तुझे एहसास भी हो जायेगा
था क्या जो हार गयी, जीत के भी शर्तों में ||
तीन तेरह में रहा खोया, कल परसों में.....
- नवीन
(... यूँ ही कुछ सोचता हूँ मैं)
तिहीकिस्मत = भाग्य विहीन
हर्फ़ों = अक्षर
देरे लम्हा = यात्रा का एक क्षण
फ़र्द = रजाई
तिहीकिस्मत रही और उम्र गयी बरसों में ||
मैं तो लिखता रहा दिन रात मेरे, नाम तेरे
जिंदगी तू ना बिकी, हाय! ना मिली हर्फ़ों में ||
इस तरह तो कभी कीमत नहीं पूरी होगी
किश्तें तू लेगी जो, कुछ सामने कुछ पर्दों में ||
देरे लम्हा सही, सिहरन से गुज़र जाएगी
रू-ब-रू मैं जो हुआ, लाख हो तू फ़र्दों में ||
एक दिन तो तुझे एहसास भी हो जायेगा
था क्या जो हार गयी, जीत के भी शर्तों में ||
तीन तेरह में रहा खोया, कल परसों में.....
- नवीन
(... यूँ ही कुछ सोचता हूँ मैं)
तिहीकिस्मत = भाग्य विहीन
हर्फ़ों = अक्षर
देरे लम्हा = यात्रा का एक क्षण
फ़र्द = रजाई
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